13 Dec 2025, Sat

“कॉफ़ी विद एसडीएम” : गढ़वा के साहित्यकारों को भा गयी एसडीएम की कॉफी, जागी उम्मीद

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सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में साहित्यकारों की होती है अग्रणी भूमिका : एसडीएम

साहित्य सृजन के लिये गढ़वा में कैसे बने अच्छा माहौल, हुआ मंथ

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अनुसार गढ़वा अनुमंडल पदाधिकारी संजय कुमार ने अपने एक घंटे के साप्ताहिक संवाद “कॉफी विद एसडीएम” में बुधवार को सदर अनुमंडल क्षेत्र के साहित्यकारों को अपने यहां कॉफी पर बुलाकर अनौपचारिक संवाद किया।

रखीं समस्याएं, दिये सुझाव

संवाद के दौरान ज्यादातर साहित्यकारों की ओर से समस्याएं और सुझाव रखे गये, जिनके समाधान और अमल की दिशा में यथासंभव पहल करने का एसडीओ संजय कुमार ने सभी को भरोसा दिलाया।

अच्छा साहित्य हमें संवेदनशील बनाता है

संवाद के दौरान वक्ताओं ने कहा कि जिस तरह संविधान और कानून हमें हमारे अधिकार और शक्तियों से परिचय कराते हैं, उसी प्रकार अच्छा साहित्य हमें नैतिकता, उत्तरदायित्व और संवेदनशीलता सिखाता है और फलस्वरूप हम एक परिपक्व नागरिक बनते हैं।

साहित्यिक गतिविधियों के लिए परिसर की जरूरत

दस से अधिक पुस्तकें लिख चुके और सृजन श्री सम्मान प्राप्त वरिष्ठ साहित्यकार सुरेंद्रनाथ मिश्रा ने कहा कि पहले प्रशासनिक स्तर पर काफी मदद मिलती थी और लगातार शहर में साहित्यिक गतिविधियां चलती रहतीं थीं, महा महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि पर भी आयोजन होते थे, लेकिन अब क्रम टूट गया है। उन्होंने मांग की कि जिला मुख्यालय में साहित्यिक गतिविधियां करने के लिए कोई भवन या परिसर उपलब्ध कराया जाए।

जिला स्तर पर बने साहित्यिक कैलेंडर

वरिष्ठ साहित्यकार श्री विनोद पाठक ने कहा कि आज साहित्यिक गतिविधियां आयोजित तो होती हैं किंतु साहित्यिक सोच के लोगों का जुटान काफी मुश्किल होता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए जिला स्तर पर पहले से एक कैलेंडर बना लिया जाए ताकि जिले के साहित्यकारों को पता हो कि किस तिथि पर कौन सा कार्यक्रम है। ऐसा करने से उनकी उपस्थिति बढ़ सकेगी। उन्होंने कहा यदि हमारी रचनाओं में दम होगा तो श्रोता जरूर आकर्षित होंगे।

युवाओं में साहित्यिक सोच पैदा करनी होगी

रासबिहारी तिवारी ने कहा कि आज श्रोताओं में साहित्यिक अभिरुचि कम होती जा रही है, इसके लिए हमें आने वाली पीढ़ियों अर्थात युवाओं के बीच में प्रशासनिक पहल से साहित्यिक प्रतियोगिताएं आयोजित करनी चाहिए।

सुरेंद्र नाथ मिश्रा, विजय पांडे व आशीष दुबे आदि ने कॉफी विद एसडीएम कार्यक्रम की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह साहित्य के प्रति सकारात्मक प्रशासनिक सोच का प्रतिफल ही है जो आज इस कार्यक्रम में साहित्यकारों को बुलाया गया।

श्री मिश्रा ने कहा कि साहित्य अब संग्रहालय की वस्तु बनता जा रहा है लेकिन प्रशासनिक पदाधिकारी अगर चाहें तो जिले में साहित्य को पुनर्जीवित करने के लिए अपने स्तर से कार्यक्रमों की श्रृंखला चला सकते हैं।

पुस्तकालय में साहित्यकारों के लिए जगह हो

कुछ साहित्यकारों ने कहा कि अनुमंडलीय पुस्तकालय ने आज एक कोचिंग संस्थान जैसा स्वरूप ले लिया है, वहां सिर्फ युवाओं की ही मौजूदगी रहती है, किंतु वहां पर अन्य लोगों विशेषकर साहित्यकारों के लिए भी बैठकर पुस्तकें और अख़बार पढने के लिए कम से कम एक कक्ष आरक्षित होना चाहिए।

स्थानीय साहित्यकारों की रचनाओं को खरीदा जाए

बैठक में साहित्यकारों ने एक मत से कहा कि स्थानीय साहित्यकारों की अच्छे स्तर की रचनाओं को प्रशासन के स्तर से भी खरीद कर अनुमंडलीय पुस्तकालय में रखवाना चाहिए ताकि उन्हें लिखने के लिए प्रेरणा मिले।

सामाजिक सौहार्द्र बढ़ाने वाले साहित्य की दरकार

संजय कुमार ने सभी मेहमानों से कहा कि यद्यपि किसी भी साहित्यकार को विषय और शब्दों के बंधन से नहीं बांधा जा सकता है, क्योंकि उसकी कल्पनाएं असीमित होती हैं, वह किसी भी विषय पर लिख सकता है, किंतु फिर भी उन्होंने सभी साहित्यकारों से अनुरोध किया कि वे अपने पसंदीदा विषय के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द और एकता बढ़ाने वाले साहित्य सृजन में भी अपना योगदान दें। आज गांव से लेकर शहर तक हर तरफ विद्वेष का माहौल बनता जा रहा है। चाहे सोशल मीडिया हो या पारंपरिक मीडिया, हर जगह नफरत, वैमनस्य और नकारात्मकता की भरमार है। ऐसे में सामाजिक सौहार्द पर लिखना विघटित होते समाज के लिए संजीवनी का काम करेगा।

विद्यालयों में भी साहित्यिक आयोजन हों

श्री राकेश त्रिपाठी ने कहा कि सभी विद्यालयों की बड़ी कक्षाओं में साहित्यकारों की जयंतियों, पुण्यतिथियों या हिंदी दिवस आदि जैसे मौकों पर साहित्यिक गोष्ठियां एवं कार्यक्रम आयोजित होना चाहिए, इससे हमारे युवाओं के बीच साहित्य को लेकर इच्छा पैदा होगी।

स्थानीय कवियों को मिले प्राथमिकता

पूनम श्री और अंजलि शाश्वत ने कहा कि जिला स्तर पर आयोजित ज्यादातर कार्यक्रमों में बाहर के कवियों या कलाकारों को बुला लिया जाता है, बेहतर हो यदि जिला के स्थापना दिवस या बंशीधर महोत्सव आदि में स्थानीय कवियों व साहित्यकारों को भी मौका दिया जाए।

ऑनलाइन लेखन और ब्लौगिंग भी अच्छा विकल्प

संजय कुमार ने साहित्यकारों से कहा कि आज साहित्य जगत में ऑनलाइन पोर्टल, वेबसाइट और सोशल मीडिया का उपयोग किया जा सकता है। आज ऐसे बहुत सारे साहित्यिक ब्लॉगर हैं जो देश दुनिया में नाम कमा रहे हैं, जो पुस्तकों की बजाय सिर्फ ऑनलाइन ब्लॉग लिखते हैं। कविताओं और कहानियों से जुड़े वेब पेज भी इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, इन वेब पेज पर लिखकर या स्वयं का पेज बनाकर भी गढ़वा के साहित्यिक सृजनशीलता को हम देश विदेश तक पहुंचा सकते हैं।

*अन्यान्य विषय*

इस मौके पर रमाशंकर चौबे व उपेंद्र शुक्ला ने अपनी-अपनी एक कविता सुनाई। वहीं सुनील पांडे ने कहा कि गढ़वा के साहित्यकारों का एक अलग से व्हाट्सएप ग्रुप बने। उन्होंने कहा कि साहित्य के बिना इंसान पूछ विहीन पशु की तरह है।

नीरज श्रीधर ने कहा कि हिंदी दिवस के अवसर पर जिला या अनुमंडल स्तर पर एक स्मारिका निकालनी चाहिए उन्होंने कहा कि साहित्य जगत में अच्छा काम करने वाले युवाओं को जिला प्रशासन ब्रांड एंबेसडर बनाए। अंजलि शाश्वत ने कहा कि प्रशासन के सहयोग से कोई मासिक पत्रिका या अर्धवार्षिक पत्रिका निकले जिसमें नवोदित साहित्यकारों की चयनित रचनाएं प्रकाशित होने के बदले उन्हें कुछ पारितोषिक मिले। विजय पांडे ने कहा कि प्रशासनिक साहित्यिक गतिविधियों में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग या संस्कृति विभाग की ओर से भी मदद मिलनी चाहिए। इसी प्रकार से तमाम मुद्दों को साहित्यकारों ने एक-एक कर रखा, जिन पर अनुमंडल पदाधिकारी संजय कुमार ने ससमय आवश्यक पहल का भरोसा दिया।

*सहभागिता*

इस दौरान सुरेंद्र कुमार मिश्र, विनोद कुमार पाठक, नीरज श्रीधर, रास बिहारी तिवारी, राजमणि राज, राकेश कुमार त्रिपाठी, विजय कुमार पांडेय, जय पूर्णा विश्वकर्मा, पूनम श्री, नागेंद्र यादव, सत्यम चौबे, सुनील कुमार पांडेय, रामाशंकर चौबे, राजीव रंजन तिवारी, उपेंद्र कुमार शुक्ला, अंजली शाश्वत, प्रमोद कुमार, सतीश कुमार मिश्र, प्रमोद चौबे, आशीष कुमार दुबे आदि ने अपने विचार रखे।

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